चादर झीणी राम झीणी, या तो सदा राम रस भीणी॥टेर॥
अष्ट कमल का चरखा चाले, पाँच तत्व की पूणी।
नौ दस मास बणताँ लाग्या, सतगुरु ने बण दीनी ॥१॥
जद मेरी चादर बण कर आई, रंग रेजा घर दीनी।
ऐसा रंग रंग दे रंगरेजा, लाल लाल कर दीन्ही ||२||
मोह माया को मैल निकाल्या, गहरी निरमल कीनी।
प्रेम प्रीत को रंगलगाकर, सतगुरुवाँ रंग दीनी ||३||
ध्रुव प्रहलाद सुदामा ने ओढ़ी, सुखदेव ने निर्मल कीनी।
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी, ज्यू की त्यू धर दीनी ||४||
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