गुरुवार, 19 नवंबर 2009

ना स्वर है, ना सरगम है, ना लय ना तराना है

ना स्वर है, ना सरगम है, ना लय ना तराना है |
हनुमान के चरणों में एक फूल चढ़ाना है ||
ना स्वर है, ना सरगम,.........................
तुम बाल समय में प्रभु, सूरज को निगल डाले,
अभिमानी सुरपति के, सब दरभ मसल डाले,
"बजरंग" हुये जब से, संसार ने माना है|| (१)
ना स्वर है,ना सरगम,..........................
सब दुर्ग ढहा करके, लंका को जलाये तूम,
सीता की ख़बर लाये, लक्ष्मण को बचाये तुम,
प्रिय भरत सरिस तुमको, "सियाराम" ने माना है || (२)
ना स्वर है, ना सरगम,...............................
जब राम नाम तुमको, पाया ना नगीने में,
तुम चीर दिये सीना, "सियाराम" थे सीने में,
विस्मत जग ने देखा, कपि राम दिवाना है || (३)
ना स्वर है, ना सरगम,.........................
हे अजर - अमर स्वामी, तुम हो अंतर्यामी,
में दिन - हीन चंचल, अभिमानी - अज्ञानी,
जब तुमने नजर फेरी, मेरा कौन - ठिकाना है || (४)
ना स्वर है, ना सरगम,......................

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