पूर्व-शुभ कर्म कर आया, मनुज तन धरणी पर पाया |
फ़िर विषयों में भरमाया, मौत नहीं याद आती है || (१)
बालपन खेल में खोया, जौबन में काम वश होया |
बुढ़ापा खाट पर सोया, आस मन को सताती है || (२)
कुटुम्ब-परिवार सुत दारा, स्वपन सम देख जग सारा |
माया ने जाल विस्तारा, नहीं ये संग जाती है || (३)
जो हरि के चरण चित लाये, वो भवसागर से तिर जाये |
"ब्रह्मानंद" मोक्ष पद पावे,"वेद-वाणी" सुणाते है || (४)
"जय श्री रामजी महाराज"
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