प्रथम गणपतिजी के गुणगाना ।
प्रेम भाव से सेवा करना तज के अभिमान ॥ टेर ॥
अड़सठ तीरथ न्यारा न्यारा, गंगा जल ल्याना ।
चतुराई की चौकी बैठ कर, करते असनाना ॥ 1 ॥
सूंड सुंडाला, दूंद दूंदाला और सोहे काना ।
मुख मँ तो एक दन्त बिराजै, खूब सजै बाना ॥ 2 ॥
पारवती के पुत्र कहावो, शिव के मन माना ।
सब देवन मँ देव बड़े हो, पूजै अगवाना ॥ 3 ॥
सब मुनियन को शीश झुकाऊँ, दीज्यो बुध ज्ञान ।
भुल्या अक्षर मोय बताओ, नहीं तुमसे छाना ॥ 4 ॥
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, भगवाँ है बाना।
भानीनाथ शरण सतगुरु की, सभा बीच आना ॥ 5 ॥
बुधवार, 18 नवंबर 2009
प्रथम गणपतिजी के गुणगाना
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